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बरमकेला का घोघरा पठार – श्रृंगी ऋषि व हनुमान जी की अनवरत अनोखा पूजा परंपरा

DEVRAJ DEEPAK
By DEVRAJ DEEPAK  - EDITOR IN CHIEF
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बरमकेला / बरमकेला नगर सिर्फ प्रशासनिक और सांस्कृतिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि अपनी धार्मिक परंपराओं के कारण भी खास पहचान रखता है। हर साल भाद्रपद मास में यहाँ एक अनोखी परंपरा निभाई जाती है, जिसके बारे में जानकर कोई भी आश्चर्यचकित हो सकता है। बरमकेला अभ्यारण्य के गहरे जंगलों में, माँ दुर्गा मंदिर के ऊपर स्थित घोघरा पठार पर श्रृंगी ऋषि व हनुमान जी की भव्य पूजा और भागवत कथा का आयोजन किया जाता है। इस अनुष्ठान का उद्देश्य केवल धार्मिक आस्था तक सीमित नहीं है, बल्कि यह नगरवासियों की अच्छी वर्षा, कृषि समृद्धि और नगर की सुख-शांति की कामना के लिए किया जाता है। पूजा के दौरान पूरा वातावरण भक्तिमय हो उठता है। मांदर, झांझ और खंजनी की ताल पर गूंजता संगीत श्रद्धालुओं को भक्ति रस में डुबो देता है।

पूजा स्थल

नगर के सैकड़ों लोग इस आयोजन में शामिल होते हैं और अपने परिवार सहित श्रृंगी ऋषि व हनुमान जी की आराधना कर पुण्य अर्जित करते हैं। यह परंपरा कोई आज की नहीं है। करीब 300 वर्ष पूर्व श्रृंगी ऋषि का वास इसी घोघरा पठार पर हुआ करता था। तभी से उनकी स्मृति में हर साल यह पूजा होती है। नगरवासी मानते हैं कि श्रृंगी ऋषि के आशीर्वाद और हनुमान जी की शक्ति से नगर हमेशा सुरक्षित और समृद्ध रहता है। यही कारण है कि पीढ़ी दर पीढ़ी यह परंपरा आज भी जीवित है। इस वर्ष का आयोजन विशेष रहा, क्योंकि यह नगर पंचायत अध्यक्ष सत्यभामा मनोहर नायक के तत्वाधान में सम्पन्न हुआ। आयोजन में खास उपस्थिति रही नगर अध्यक्ष प्रतिनिधि मनोहर नायक और नगर पंचायत उपाध्यक्ष राजू नायक की।

पूजा स्थल

उनकी मौजूदगी ने कार्यक्रम की भव्यता को और बढ़ा दिया। पूजा सम्पन्न होने के बाद नगरवासी एक साथ भोजन करते हैं और प्रसाद घर ले जाकर परिवार व नगर की सुख-शांति की मंगल कामना करते हैं। यह दृश्य बरमकेला की सामूहिक एकता, धार्मिक आस्था और सांस्कृतिक गौरव का प्रतीक बन जाता है।आज भी बरमकेला के लोग इस परंपरा को गर्व के साथ निभाते हैं और यह मानते हैं कि यह आयोजन न केवल अध्यात्मिक शांति देता है बल्कि पूरे नगर को एक डोर में बाँधकर रखता है।

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