बरमकेला / महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (नरेगा) एक ऐसी योजना है, जिसके अंतर्गत गांवों में रहने वाले मजदूरों और कर्मचारियों को रोजगार व सम्मानजनक आजीविका सुनिश्चित करने का दावा किया जाता रहा है। लेकिन बरमकेला विकासखंड के हालात इस दावे की पोल खोलते नजर आ रहे हैं। यहां नरेगा के तहत कार्यरत सैकड़ों कर्मचारियों को पिछले लगभग चार महीनों से वेतन का भुगतान नहीं हुआ, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति पूरी तरह डांवाडोल हो गई है।
बरमकेला ब्लॉक की विभिन्न ग्राम पंचायतों में पदस्थ रोजगार सहायक, डाटा एंट्री ऑपरेटर, तकनीकी सहायक एवं अन्य संविदा कर्मचारी रोजाना अपने कर्तव्यों का पालन कर रहे हैं। कोई मजदूरों का मस्टररोल भरने में जुटा है, तो कोई ऑनलाइन डेटा एंट्री में लगा है। कई कर्मचारी पंचायतों में निर्माण कार्य की मॉनिटरिंग और योजनाओं के क्रियान्वयन की जिम्मेदारी भी निभा रहे हैं। मगर इसके बावजूद बीते कई महीनों से वेतन अटका होने के कारण उनकी मेहनत का फल उन्हें नहीं मिल पा रहा।
रोजमर्रा की जरूरतों पर भारी पड़ा वेतन संकट
वेतन भुगतान में देरी ने कर्मचारियों की परेशानियों को इस हद तक बढ़ा दिया है कि कई परिवार दो वक्त की रोटी का इंतजाम भी मुश्किल से कर पा रहे हैं। कुछ कर्मचारियों ने बताया कि बच्चों की स्कूल फीस तक जमा नहीं हो पा रही। किराया, बिजली बिल और घरेलू खर्च के लिए भी उन्हें कर्ज लेने पर मजबूर होना पड़ रहा है।
बरमकेला विकासखंड के एक डाटा एंट्री ऑपरेटर ने बताया –
“हमारे ऊपर बैंक की किस्त और बच्चों की पढ़ाई का खर्च भी है। चार महीने से वेतन रुका हुआ है। जब भी जिला कार्यालय जाते हैं, सिर्फ आश्वासन दिया जाता है। इतने बड़े प्रदेश में कर्मचारियों की स्थिति इतनी बदतर होगी, सोचा नहीं था।”
सुनवाई के नाम पर सिर्फ आश्वासन
कर्मचारियों ने बताया कि विगत महीनों में उन्होंने कई बार जनपद पंचायत और जिला पंचायत में अधिकारियों से मुलाकात की। लेकिन हर बार सिर्फ यह कहा गया – “फाइल प्रक्रिया में है, जल्द ही वेतन जारी होगा।” मगर ‘जल्द’ कब आएगा, इसका कोई जवाब नहीं मिलता।
कर्ज में डूबने की कगार पर कर्मचारी
वेतन न मिलने से कर्मचारियों की वित्तीय समस्याएं इतनी बढ़ गई हैं कि अब वे रिश्तेदारों से उधारी लेकर घर चला रहे हैं। कई लोगों ने छोटे कर्ज भी ले रखे हैं, जिनका ब्याज रोजाना बढ़ रहा है। कुछ कर्मचारियों ने यह भी कहा कि अगर अगले कुछ सप्ताह में वेतन जारी नहीं हुआ, तो उनके पास नौकरी छोड़ने या विरोध प्रदर्शन करने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचेगा।
नियमों के खिलाफ लापरवाही का आरोप
कर्मचारियों ने आरोप लगाया कि नरेगा जैसी महत्वपूर्ण योजना में इतनी लापरवाही नियमों और मानवाधिकारों के खिलाफ है। यह योजना ग्रामीण क्षेत्रों में आजीविका सुनिश्चित करने के लिए बनी थी, लेकिन समय पर वेतन न मिलने से इसका उद्देश्य ही असफल होता दिख रहा है।
प्रशासन से तत्काल कार्रवाई की मांग
सभी संविदा कर्मियों ने शासन-प्रशासन से मांग की है कि लंबित वेतन का भुगतान तुरंत कराया जाए। इसके अलावा भविष्य में भी नियमित भुगतान की व्यवस्था सुनिश्चित की जाए, ताकि उन्हें आर्थिक संकट का सामना न करना पड़े। बरमकेला विकासखंड में नरेगा कर्मचारियों की इस पीड़ा ने यह सवाल खड़ा कर दिया है कि आखिर कब तक संविदा कर्मचारियों को सिर्फ आश्वासन देकर भटकाया जाता रहेगा?